Friday, January 29, 2010

तीन कवितायं

करना और दिखना

बास ने सहयोगी से कहा
काम करना ही काफी नहीं
काम करते हुए दिखना भी चाहिए
सहयोगी ने अपनी अंधभक्ति में
इसे भी स्वीकार कर लिया
और काम करना बंद कर
सिर्फ दिखाना शुरू कर दिया
बास का कहा तो हो गया
काम तमाम हो गया
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भोंकना

यह बताने की जरूरत नहीं क़ि
जो भोंक रहा है वह कौन है
और क्यों भोंक रहा है
वह कुत्ता है गली का ही नहीं
मालिक के साथ महल में रहने वाला भी
असल में वह डरा हुआ है
खुद के अस्तित्वा से, किसी अज्ञात खतरे से
अपने उस मालिक से भी
जो उसे अपनी सुरकचा के लिए पाले हुए है
भोंकना उसकी निअति है
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अंत नहीं

चुनाव में हार के बाद
किसी के निधन के बाद
कुछ लोगों को मरवा देने के बाद
यह मत कहो या मानो क़ि
उस विचारधारा का अंत हो गया
विचारधारा बनी रहती है
उसे ख़त्म नहीं किया जा सकता
जो ऐसा कहते हैं
उन्हें मूर्ख अवश्य कहा जा सकता है .

2 comments:

Unknown said...

blog ke bahane hi sahi asli roop men khul rahe hain aap

कुश said...

बहुत खूब