Tuesday, January 26, 2010

उसे मरने दो

अंधरे के आगे रोवै, आपन नैना खोवै. और भैस के बीना बाजै भैस खड़ी पगुराई. यह सिर्फ कहावतें नहीं हैं . जरा सोचिए उस आदमी के बारे में जो काम करते - करते मरता रहता है और एक आदमी मजा लेता रहता है .मजा लेने वाला यह नहीं जानता है क़ि वह काम करने वाले के साथ जो अन्याय कर रहा है उसकी सजा वह भुगतेगा किसी न किसी तरह . काम करने वाले को तो काम करना ही है लेकिन काम करवाने वाले यह भूल जाते हैं इसी काम करने के दौरान वह उसके साथ अन्याय करने वाले क़ि कब्र भी खोदता रहता है . यह अलग बात है क़ि यह काम करवाने वाले को बहुत देर तक समझ में नहीं आता . जब तक उसे समझ में आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और कब्र उसके करीब आ जाती है . इसलिए हे काम करवाने वालों मेरा यह नेक सुझाव है क़ि काम करवाने वालों के श्रम और उनकी मजबूरिओं को समझो नहीं तो मुई खाल क़ि साँस सो सार भस्म होई जाए वाली कहावत ही चरितार्थ होगी .अभी भले ही आपको गलती से आपको काम करवाने का अधिकार मिल गया हो लेकिन यह आपके पास हमेशा रहने वाला नहीं है . प्रकृति का डंडा बहुत खतरनाक होता है . वह जब चलता है बड़े -बड़ों के लिए जानलेवा साबित होता है . आप किस खेत क़ि मूली हो . लेकिन ऐसा बहुत कम होता है क़ि समय रहते इतनी छोटी सी बात समझ में आ जाए . समझ में तब आती है जब बहुत देर हो चुकी होती है . तब हाथ मलने और किस्मत पर रोने के अलावा कुछ नहीं बचता . कम करने वाला तो कम करके गुजारा कर लेगा लेकिन कम करवाने वाले के सामने तो भूखों मरने क़ि नौबत आ जाएगी . फ़िलहाल उसे भूखों मरने के लिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि वह इसी लायक ही . उसके प्रति किसी तरह क़ि दया नहीं दिखानी चाहिए .

2 comments:

सोतड़ू said...

गुस्से में लग रहे हो सर........

गुस्से में मैं भी बहुत हूं.... आपकी पिछली पोस्ट पर कमेंट किया था..... जैसे ही लॉगिन किया सब गायब हो गया.....

लेकिन....
क्योंकि द शो मस्ट गो ऑन.... इसलिए मैं अब आपकी दूसरी पोस्ट पर भी कमेंट कर रहा हूं...

हालांकि मुझे लगता है कि गुस्सा भी ज़िंदा रहना चाहिए क्योंकि ये है, तो आदमी है।

Unknown said...

itna gussa acha nahi jo na samjhe wo sacha nahi