Sunday, March 1, 2015

बेमौसम की बारीश

बसंत के मौसम में आप सोए हों और अलसुबह कोई यह कहते हुए जगाए कि अरे उठिए बारिश हो रही है तो कैसा लगेगा। सबको पता नहीं पर मुझे लगा कि छोड़ो नींद को और खिड़की-दरवाजे खोलो। सब कुछ सुहाना लगेगा। धूल कहीं बह चुकी होगी और पौधों की पत्तियां हरी-भरी होंगी। मन मचलने लगा और मैं बाहर आ गया। रिमझिम बारिश। लेकिन अचानक मन में कुछ शंकाएं और खतरे भी उठने लगे। पहला यह कि यह बेमौसम की बारिश बीमार भी कर सकती है। दूसरा यह कि इससे किसानों की फसलों का क्या होगा। कहीं वे नष्ट तो नहीं हो जाएंगी। तीसरा यह कि गांवों में मां, बहनें और भाभियां जो चिप्स बना रही थीं उनका क्या होगा। इससे भी ज्यादा इसको लेकर भी होने लगी कि चार दिन बाद होने वाली होली का क्या होगा। ठंड में होली कौन खेलेगा और कौन रंगों से सराबोर करेगा। कहीं रंगों में सराबोर हो जाने का सुख छीना तो नहीं जाएगा।

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