Tuesday, March 3, 2015

किसान ने की आत्महत्या


अभी एक खबर मिली है कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के एक किसान ने अपने ही खेत में आत्महत्या कर ली। यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि इस समय बेमौसम की बरसात हो रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि ठीक इसी समय में संसद में और उसके बाहर भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर बहस चल रही है। सरकार कह रही है कि उसकी चिंता में गरीब और किसान हैं। विपक्ष कह रहा है कि यह सरकार हर काम गरीब और किसान-मजदूर विरोधी कर रही है। पता नहीं कौन सच बोल रहा है लेकिन परिणाम इस दुखद रूप में सामने आ रहा है कि किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अभी हमारे एक मित्र पूर्वांचल के अपने गांव से दिल्ली लौटे हैं। मिले तो बहुत परेशान दिखे। पूछने पर बताने लगे कि इस बार आलू की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी लेकिन वह इतने सस्ते में बिक रही है कि उसे बेचने पर लागत भी नहीं निकल पाएगी। सोचा था ठीक से बिक जाएगी तो कुछ कर्ज कम कर लिया जा सकेगा लेकिन अब तो इसकी चिंता है कि इस आलू को करें तो करें। इससे भी बड़ी चिंता यह है कि इस बारिश से तो गेहूं और सरसो आदि की फसल भी बरबाद हो जाएगी। ऐसा हो गया तो खाने के लाले पड़ जाएंगे। इस सबके बीच करीब एक साल से बेरोजगार पत्रकार का कहना था कि वह कई दिनों से यह सोच रहे थे कि अब दिल्ली में गुजारा नहीं हो रहा है तो गांव चलेंगे और वहीं कम से कम खाने भर का तो उत्पादन कर ही लेंगे। लेकिन अब लग रहा है कि अगर मौसम की मार इसी तरह पड़ेगी और सरकार जमीन भी ले लेगी और किसानों को कोई सुविधा नहीं देगी तो वहां भी जीवन दूभर हो जाएगा। सवाल यह है कि आखिर आदमी जाए तो कहां जाए। क्या वह मरने के लिए ही मजबूर है। पता नहीं सरकार इस पर क्या कहेगी।

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