सुबह फ्रेश होने के बाद मैं डेंगू से पीड़ित अपने एक मित्र को देखने के लिए जाने को तैआर हो रहा था कि दरवाजा खटखटाया गया. दरवाजा खोला तो पता कि हमारे अपार्टमेन्ट के ही करीब पांच-छह लोग जिनमें कुछ वृद्ध और कई नौकरीपेशा लोग थे जिन्हें देखते ही समझ में आ गया कि यह लोग चंदा मांगने आये हैं . चंदा मांगना कोई बुरी बात नहीं होती . पंडित मदन मोहन मालविया ने चंदा मांगकर बनारस में विश्वविद्यालय बनवा दिया था . मैंने खुद भी कई बार चंदा माँगा है कई कामों के लिए . इनमें एक पत्रिका और एक पुस्तकालय के लिए चंदा भी शामिल है . शायद इसीलिए किसी सामाजिक काम के लिए चंदा देने में मुझे ख़ुशी भी होती है . लेकिन आज जो लोग जिस काम के लिए चंदा मांगने आये थे वह मुझे कतई पसंद नहीं आया. असल में वे लोग उस मंदिर के लिए चंदा मांगने आये थे जो अपार्टमेन्ट में ही बनाया जा रहा है. जब उसकी शुरुआत हुई थी तभी मेरे दिमाग में यह सवाल उठा था कि आखिर इसकी जरुरत क्या है. जाहिर है यह सवाल उन लोगों के लिए बकवास लग सकता है जो इस काम में लगे हैं इसके बावजूद क्या इसका उनके पास कोई माकूल जवाब हो सकता है कि जहाँ मूलभूत सुविधाए न हों वहां इस तरह के काम का क्या मतलब हो सकता है. यह तब और जब उसी मंदिर कि दिवार से लगा एक मंदिर पहले से ही मौजूद है. इसकी अनुपयोगिता इससे भी साबित होती है. मंदिर में पूजा ही होती है और अभी कोई इससे रोक नहीं रहा है. जरा सोचिए, अगर उतनी ही जगह में बच्चों के खेलने के लिए कुछ बनवा दिया जाता तो कितना अच्छा होता. फ़िलहाल बच्चों के खेलने के लिए कोई जगह नहीं है न ही खेल का कोई साधन . उस जगह पर एक वाचनालय बनाया जा सकता था जहाँ कुछ अच्छी पत्रिकाएं और किताबें रखी जा सकती थीं जिनकों पढने से लोगों को कुछ ज्ञान प्राप्त होता. लोग वहां बैठकर जीवन से जुडी बुनिआदी समस्याओं पर विचार-विमर्श कर सकते थे जो बेहद जरुरी है और जिनके लिए अभी कोई जगह नहीं है. मुझे इस पर आश्चर्य होता है कि लोग इस तरह चीजों को क्यों नहीं देखते. और भी गम हैं ज़माने में, उनकी ओर इनका ध्यान क्यों नहीं जाता. दिल्ली में डेंगू फैला हुआ है और यह मच्चरों से होता है. मच्चार गंदगी से फैलते हैं. किसी भी समझदार आदमी के लिए यह गंभीर चिंता होनी चाहिए कि उसके आसपास गंदगी न हो लेकिन जिस अपार्टमेन्ट में भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जा रहा है उसके सीवर का गन्दा पानी सामने ही बहता रहता रहता है. इससे भी गंभीर चिता कि बात यह होनी चाहिए थी कि ठीक अपार्टमेन्ट के सामने बने ग्रीनपार्क में महीनों से सीवर का पानी छोड़ा जा रहा है जिसके निकलने का कोई इंतजाम न होने के कारण लगातार जमा हो रहा है जो कभी भी घटक बीमारी का कारण हो सकता है पर इसकी किसी को चिंता नहीं है . हालाँकि कोई कह सकता है कि यह काम सरकार या जीडिए का है लेकिन भाई अगर वे नहीं कर रहें हैं तो आखिर भुगतना तो हम सभी को ही पड़ेगा. संभव है कि मुझे इसकी जानकारी न हो और इन सभी मुद्दों पर हमारे यह चंदा मांगने वाले साथी काम कर रहे हों. अगर ऐसा होगा तो मुझे बहुत खुश होगी पर लगता नहीं कि बारे में सोचा भी गया होगा. दरअसल हम महान भारत देश के महान नागरिक हैं. हमें अपनी बुनिआदी समस्याओं कि कोई चिंता नहीं होती और समाज सुधार के नाम पर हम धर्म के आगे बढ़ ही नहीं पाते. येही कारण है कि उसी में उलझे रह जाते हैं. हजारों, करोड़ों लगाकर मंदिर बनाने वाले बहुत मिल जायेंगे लेकिन ऐसे लोग बहुत कम मिलेंगे जो यह बीड़ा उठायें कि हम ऐसा अस्पताल या ऐसा स्कुल बनवाएँगे जिसमें जरूरतमंद लोगों को मुफ्त उपचार और शिक्छा मिल सके. क्या इस तरह सोचा और किया जा सकेगा या सब कुछ भगवान भरोसे ही रहेगा.
1 comment:
सवाल तो फिर भी खड़ा ही है कि आपने चंदा दिया या ये बेहद उपयोगी भाषण ? वैसे मैं एक से ज़्यादा बार जागरण करने वालों या मंदिर बनवाने वालों को चंदे से इनकार कर चुका हूं... यकीनन इसके बाद उन्होंने मेरे अनिष्ट की कामना की होगी... एक-दो बार तो मेरे सामने ही.... पर मैंने अपना पार्ट ठीक से अदा कर दिया
Post a Comment