Sunday, October 5, 2008

सच्चाई की खातिर

ऐसी बहुत सारी बातें जो अब तक केवल महसूस करने तक ही सीमित रह जाती थीं। जिनके लिए कोई प्लेटफार्म नहीं होता था। अब उन्हें लोगों के सामने लाने का अवसर उपलब्ध हुआ है। ऐसे साधन जिनके बारे में माना जाता था कि वहां अपने को अभिव्यक्त कर सकते हैं, वे इतने संकीर्ण हो चले हैं कि वहां जगह मिलना ही असंभव हो गया है। उन जगहों पर जो कुछ दिखता है वह इतना संकीर्ण और पूवार्ग्रह से ग्रस्त होता है कि लगता है वह सच तो नहीं ही है सच से काफी दूर है।

ऐसे समय में सच्चाई को सामने लाना अथवा उस तरह के विचारों को अभिव्यक्त कर पाना बेहद कठिन है। यह वह छटपटाहट है जो हर उस शख्स के साथ है जो वास्तव में देशभक्त है, जो यह चाहता है कि आदमी बना रहे, जिसकी इच्छा है एक सभ्य समाज बने और हर कोई ईमानदारी से सोचे और काम करे। लेकिन शायद सिस्टम को यह नहीं चाहिए और न उसे किसी भी कीमत पर मंजूर है। ऐसे में वह तरीके खोजने होंगे जिनके माध्यम से सच्चाई सामने आ सके। सच्चाई सामने आएगी तभी नीर क्षीर का विवेक विकसित हो सकेगा और यह पता चल सकेगा कि क्या किया जाना चाहिए औऱ क्या नहीं।

अगर ऐसा नहीं होगा तो कुछ दिखेगा और ज्यादा चमकीले लेबल के साथ सामने आएगा, जो झूठ के माध्यम से अपने को सच की तरह प्रस्तुत कर सकेगा, वही लगेगा कि अंतिम सच है। यह सिथति बहुत खतरनाक होगी। दुभार्ग्य से यही हो रहा है। इसे रोकना होगा। छल-छद्म को बेनकाब करना होगा। यह जिम्मेदारी हम सभी के ऊपर है, खासकर उनके ऊपर जो चाहते हैं सच आगे बढ़े। जो बेहतर समाज औऱ देश का निमार्ण करना चाहते हैं। अगर आपके अंदर यह सब है तो आइए इसके लिए शुरुआत करें। देखते हैं क्या होता है।
फोटो साभार - about a boy

2 comments:

वर्षा said...

सच्चाई के रास्ते में अवरोध-गतिरोध कैसा। शुरू हो जाइये। आवाज़ किसी न किसी कान तक तो अवश्य पहुंचेगी।

Ek ziddi dhun said...

सबसे ज्यादा अवरोध इसी राह में होते आये हैं