Sunday, October 5, 2008
आ गया एक अलहदी
हर तरफ गतिरोध है, अवरोध ही अवरोध हैं। ऐसे में जो एकदम अलहदी हैं वही कुछ नया निकाल कर सामने ला सकते हैं। अवरोधों को खत्म कर सकते हैं, गतिरोध को तोड़ सकते हैं। वैसे, हमारे भारत पर प्राचीन काल से प्रकृति की इतनी कृपा रही कि यहां अलहदियों की जमात पैदा होती गई। खासकर गंगा-यमुना के दोआब में ऐसे अलहदी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते थे। लोग गप मारते थे, दर्शन पर चर्चा करते थे, बातों-बातों में उन्होंने एक दो नहीं, लाखों देवता रच डाले। इसी परंपरा में यह अलहदी भी शामिल है। आज से शुरुआत कर रहा हूं। समाज, रीति-रिवाज, साहित्य, राजनीति और दर्शन से लेकर कोई विषय नहीं छोड़ूंगा - ऐसा वादा है मेरा। तो...
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1 comment:
गंगा-जमुना के बीच से हूँ, इलाके को नेकनाम न कीजिये. ये तो कहा ही गया है कि दुनिया की तमाम दिक्कतें कुछ करते रहने वालों की वजह से हैं. पहले वे दिक्कत पैदा करते हैं, फिर हल ढूंढते हैं (ऑन डूइंग नथिंग एस्से में ये ही पढ़ा था). लेकिन हिन्दुस्तान में जहाँ `अजगर करे न चाकरी..` सिद्धांत हो, वहां यह दर्शन क्या गुल खिलाये, आप और सोत्डू बतायीएगा
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