Saturday, October 18, 2008

तुम्हारी मूर्खता उनका टैलेंट

वैसे तो मेरी पिछली पोस्ट पर अभी तक कोई टिप्पणी आई नहीं है। इससे ही यह पता चलता है कि शायद किसी ने इसे देखा-पढ़ा नहीं है। लेकिन इससे जो सबसे महत्वपूर्ण बात अपने आप साबित होती वह यह है कि नाम की सार्थतकता साबित करने की जरूरत नहीं रह गई। मान गए न आप। मैं यह मानकर चलता हूं कि आपको अलहदी का अर्थ पता होगा। अगर नहीं है तो इससे समझ लीजिए कि पिछली बार इस पर पांच-छह अक्टूबर को लिखा गया था। आज 18 अक्टूबर है। हुई न मार्के की बात। अब मुद्दे की बात। कुछ दिनों पहले भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व महान कप्तान सौरव गांगुली ने संन्यास की घोषणा की। यह जानकारी किसी भी क्रिकेट प्रेमी के लिए तकलीफदेह होगी। (उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें खेल के बजाय टुच्चई की राजनीति में ज्यादा मजा आता है।) आज इसका उल्लेख इसलिए ज्यादा समीचीन है कि आस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे टेस्ट मैच में मोहाली में पहली पारी में गांगुली ने 102 रन बनाए। यह कोई एक मौका नहीं है। इससे पहले भी बहुत बार गांगुली ने अपने को पहाड़ की तरह खड़ा होकर साबित किया है। इसके बावजूद अगर कुछ गिनती के लोग उन पर अंगुली उठाते रहे थे तो इससे यही पता चलता है कि ऐसे लोगों का किसी भी अच्छी चीज से कोई लेना-देना नहीं होता। ऐसे लोगों का विश्वास चीजों को नष्ट करने में ज्यादा होता है। उन्हें कोई हुनरमंद व्यक्ति इसलिए पसंद नहीं आता क्योंकि किसी अयोग्य व्यक्ति को तवज्जो नहीं देता। गांगुली भी इसी के शिकार हुए हैं। गांगुली का व्यक्तिगत कैरियर और उनकी कप्तानी को हमेशा याद किया जाएगा। कोई इसे भुला नहीं सकता लेकिन ग्रेग चैपल की तुच्छ राजनीति ने उन्हें संन्यास लेने को मजबूर कर दिया। हम लोग छोटी कक्षाओं में इतिहास पढ़ते हुए यह पढ़ते थे कि फला राजा की असफलता के क्या कारण थे। भारतीय क्रिकेट और उसकी टीम के महान खिलाड़ियों के करियर के साथ खिलवाड़ करने और उन्हें संन्यास लेने के लिए मजबूर करने में चैपल ने जो घिनौना काम किया है, इसके लिए कोई भी न्यायप्रिय व खेलप्रेमी उसे माफ नहीं करेगा। अब जबकि सचिन तेंदुलकर ने यह साफ कह दिया है कि उन्हें किसी को संन्यास लेने के बारे में सलाह देने की जरूरत नहीं है। वह जब तक चाहेंगे खेलेंगे। इस दो टूक जवाब से उन लोगों को सावधान हो जाना चाहिए जो टुच्चई की राजनीति करते रहते हैं और जो टैलेंट से डरते हैं, जिन्हें जीहुजूरिए चाहिए। यही होना चाहिए। यह खिलाड़ी या किसी भी पेशे वाला व्यक्ति तय करेगा कि उसे क्या करना है, कुछ दलाल किस्म के अयोग्य व्यक्ति अपनी अयोग्यता छिपाने के लिए दूसरों को भले ही कमजोर कहते फिरें लेकिन उनके कहने से कुछ नहीं होने वाला। टैलेंट उन्हें रौंदकर आगे निकल जाएगा और वे जिंदगी भर किसी गंदे तालाब में सड़ते रहने को ही अपना अहोभाग्य मानते रहेंगे क्योंकि उनके पास अपना तो कुछ होता नहीं सिवाय दूसरों की कीमत पर अपनी कमजोरियां छिपाने के। सचिन के जवाब से टुच्चे लोगों को समझ लेना चाहिए कि उनका भविष्य कैसा है।

Sunday, October 5, 2008

सच्चाई की खातिर

ऐसी बहुत सारी बातें जो अब तक केवल महसूस करने तक ही सीमित रह जाती थीं। जिनके लिए कोई प्लेटफार्म नहीं होता था। अब उन्हें लोगों के सामने लाने का अवसर उपलब्ध हुआ है। ऐसे साधन जिनके बारे में माना जाता था कि वहां अपने को अभिव्यक्त कर सकते हैं, वे इतने संकीर्ण हो चले हैं कि वहां जगह मिलना ही असंभव हो गया है। उन जगहों पर जो कुछ दिखता है वह इतना संकीर्ण और पूवार्ग्रह से ग्रस्त होता है कि लगता है वह सच तो नहीं ही है सच से काफी दूर है।

ऐसे समय में सच्चाई को सामने लाना अथवा उस तरह के विचारों को अभिव्यक्त कर पाना बेहद कठिन है। यह वह छटपटाहट है जो हर उस शख्स के साथ है जो वास्तव में देशभक्त है, जो यह चाहता है कि आदमी बना रहे, जिसकी इच्छा है एक सभ्य समाज बने और हर कोई ईमानदारी से सोचे और काम करे। लेकिन शायद सिस्टम को यह नहीं चाहिए और न उसे किसी भी कीमत पर मंजूर है। ऐसे में वह तरीके खोजने होंगे जिनके माध्यम से सच्चाई सामने आ सके। सच्चाई सामने आएगी तभी नीर क्षीर का विवेक विकसित हो सकेगा और यह पता चल सकेगा कि क्या किया जाना चाहिए औऱ क्या नहीं।

अगर ऐसा नहीं होगा तो कुछ दिखेगा और ज्यादा चमकीले लेबल के साथ सामने आएगा, जो झूठ के माध्यम से अपने को सच की तरह प्रस्तुत कर सकेगा, वही लगेगा कि अंतिम सच है। यह सिथति बहुत खतरनाक होगी। दुभार्ग्य से यही हो रहा है। इसे रोकना होगा। छल-छद्म को बेनकाब करना होगा। यह जिम्मेदारी हम सभी के ऊपर है, खासकर उनके ऊपर जो चाहते हैं सच आगे बढ़े। जो बेहतर समाज औऱ देश का निमार्ण करना चाहते हैं। अगर आपके अंदर यह सब है तो आइए इसके लिए शुरुआत करें। देखते हैं क्या होता है।
फोटो साभार - about a boy

आ गया एक अलहदी

हर तरफ गतिरोध है, अवरोध ही अवरोध हैं। ऐसे में जो एकदम अलहदी हैं वही कुछ नया निकाल कर सामने ला सकते हैं। अवरोधों को खत्म कर सकते हैं, गतिरोध को तोड़ सकते हैं। वैसे, हमारे भारत पर प्राचीन काल से प्रकृति की इतनी कृपा रही कि यहां अलहदियों की जमात पैदा होती गई। खासकर गंगा-यमुना के दोआब में ऐसे अलहदी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते थे। लोग गप मारते थे, दर्शन पर चर्चा करते थे, बातों-बातों में उन्होंने एक दो नहीं, लाखों देवता रच डाले। इसी परंपरा में यह अलहदी भी शामिल है। आज से शुरुआत कर रहा हूं। समाज, रीति-रिवाज, साहित्य, राजनीति और दर्शन से लेकर कोई विषय नहीं छोड़ूंगा - ऐसा वादा है मेरा। तो...